________________
( ६१ )
मानिक श्रुत सरधान धरत ते होत भवो दधि पार । सत० g ॥
६० पद-रमिया ॥
धनि शैली शिव पुर गैली है ॥ टेक ॥ जामें नित श्रुत पठन वन हे जिन जजन भजन विधि फैली है ॥ धनि०९॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म खण्डिनी ज्ञानादि स्वगुण की थैली है ॥ धनि०२ ॥ जामें भवि चरचा नित जल्पत तिनकी मति होत न मेली है ॥ धनि । मानिक यह जयवंती जग में कलि में शिव रमनि सहेली है || धनि०४ ॥
६८ पद-रमिया
भज नेमीश्वर शिव सुखकारी ॥ टेक ॥ छपन कोटि युत व्याहन आये चित पशुअनि को करुणाधारी ॥ भज० ९ ॥ राजवाज सब परिजन छांड़े जिन छोड़ दई राजुल छांड़ नारो ॥ भज० २ ॥ चढ़ि गिरिनारि ध्याय