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आतम लौ लांगीरे ॥ जियरा० २॥ आपु पगे शिवरमनी से हम प्रभुगुण पागी रे। मानिक नेम चरण भजि राजुल भई वड़ भागीरे ॥ जियरा०३॥
५९ पद-राग होरी ॥ हृदय छवि वस गई श्री जिन प्यारी यह ती सुर नर गण मनहारी ॥ टेक ॥ अनंत ज्ञान दृग सुख वीरजमय अनंत चतुष्टय धारी । तुम मुख चन्द्र वचन किरणावलि लोकालोक उजारी ॥ हृदय० १॥ शांति स्वभाव साधि शिवपथ को भये अविचल अविकारी। मानिक श्री जिन चरन कमल पर मन बच तन वलिहारी ॥ हृदय०२॥
६० पद-राग भैरवी टप्पो ॥ एजी म्हारी अरज श्री जी म्हारी अरज सनि लीजो जी त्रिभुवनपाल ॥टेक॥ आदि