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(४४) ॥ ज्ञानी० टेक ॥ ज्ञान विराग शक्ति को धारेनिज परणतियारे ॥ ज्ञानी० १॥ ज्यों व्यमचार निप्यार यार सोभरता मांहिं वि. रतियारे । पंकज रहे पंक माहीं पय नहीं परसतियारे ॥ ज्ञानो० २ ॥ उदय चरित्र मोह ' वर बसतें व्रत नहीं रतियारे । कर्म शुभा
शुभ उदय मांहिं नहिं हर्ष अरतियारे ॥ ज्ञानो० ३ ॥ भोग बिलास करत न धरत ममता निज छतियारे। भव तिथि घटत बढ़न प्रबोध शशि भ्रम तम विनशतियारे ॥ ज्ञानी० ४ ॥ देव धर्म गुरु तत्व निजातम तन मन बतियारसरधा धरत हरत अघ मानिक गुनसुमिरतियारे॥ज्ञानी०५
४५ पद-राग गौष्ट मल्हार ॥ क्यों घरडारी कुमति कुनारी चेतनराय अनारी ॥ टेक ॥ या प्रसंग चहुंगति भट