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(४५) काये पाये दुख अतिभारी ॥ क्यों० १ ॥ त्रभुवन पति पद छांडि आपनो क्यों हो रहे भिखारी। दुखी भये विन लाज मरत ही सुधि दुधि सवे विसारी ॥ क्यों०२॥ अब अपनी बल आप सम्हारो निज पौरुप विस्तारी ।मानिक सुमति कहत नजि दुरमति भजि जिन पति सुखकारी पक्यांगा३ ४६ पद-राग झझोटी माफी मिश्रगति में ॥
भव्य सुनो एक सीख सयानी । काज करो इमिनित हित दानी ॥ टेक ॥ युगल घड़ी भ्रम भाव नासिकें प्रगटा के चैतन्य निसानी । भव्य० १॥ ज्ञान सुरूपी को सुज्ञान करि ताही को ध्यान धरी सुखदानी। इत्यादिक कौतूहलकरि भरि जन्म पियो ज्ञानामृत पानी । भव्य०२ ॥ तजिभव पास वसहुँ शिव वाम विनासह मोह - पति रजधानी । मानिक इमि पुरुपारय