________________
(४२) वांग तजी चित कुमति कुत्रिय बसिगईरे। क्रोध मान मद मोह छको सुधि युधि सय विसरि गईरे॥ तोको०१॥ अनरथ कर्म करतन हटत पग पंच पाप दुख मईरें। कगरादिक सेवे निशि बासर सत संगति तजि दईरे ॥तोकों० २॥ हित अरु अहित सुतिन कारण में भर्म बुद्धि परनई रे। ख्याति लाभ पूजा कीरति की चाह भई नित नई रे। तोको ३॥ तातें अब कुचालि ताज मानिक भजि जिन वृप सुख मईरे। वीती ताहि विसारि वावरे अव तूं राखि रहीरे तोको ४॥
४३ पद-राग कलांगण्टा ॥ करले सम्हाल अपनी-तूं छांड़ मोह की झपनी ॥ टेक ॥ तूं तो चिन्मूरति ज्ञाताक्यों पुद्गल के रसराता। यासू तेरा क्या नाता तजि राग द्वेष का तांता ॥ कर० ॥