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(४१) हित अरु अहित सुतिनके कारण जानिलए सुख दैना ॥ अत्र०२॥ कुगुरु सुगुरु वच विन पहिचाने मिथ्या भाव मिटैना ॥ अव० ३॥ मानिक सगरु सीख नौका चढि क्यों कर. जीव तिरेना । अब०४॥
४१ पद-गग देश नया ईमम॥ निज आतम में रमि रहना । परस्मनेह तजि देना ॥ निज० ॥ टेक ॥ परसों नेह हेत है दुख को सी विधि बंधन सहना ।। निज०१॥ इष्ट अनिष्ट बुद्धि तजि पर में यह निज हित लखि लेना ॥ निज० ॥ सकल द्रव्य को ज्ञातादृष्टा यह स्वभाव भजि लेना ॥ निज० ३॥ मानिक अपने निज स्वभाव में सदा काल थिर रहना॥ निजल्या
४२ पद-भाग दीपचंदी ॥ तोकों यह सिख कोने दईरे । जासूदुगति गैल गहीरे ॥ टेक॥ तुमति सखी सर