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(४०) ३८ पद-राग देश तथा ईमन ॥ जिन मत लिंग तीन विधि वरने।तिन को सरधा भवि करने ॥ टेक ॥ मुनि, श्रा. वक उत्कृष्ट आर्जिका एही भवदधि तरने ॥जिन० १॥वाह्याभ्यंतर संग रहित जिन रूप यथा विधि धरने । खंड वस्त्र वा कदि कोपीन श्रावक उत्कृष्टा चरने ॥ जिन० २॥ स्वेत साटिका धरति आर्जिका राग द्वेष को हरने ।इन के इन्द्रादिक भवि जन गण रहत चरण के सरने ॥ जिन०३ ॥ इन विन
और कुलिंग जगत में भेष उदर के भरने। मानिक भव्य परखि सेवे ते शिव मंदरिकों परने ॥ जिन०४॥
४. पद--राग देश तथा ईमन । अब हम सुने सुगुरु के बैना । जासूखु. ले ज सम्यक नैना ॥ टेक ॥ स्वपर पिछाना भ्रमतमभाना जाना अब मत जैना॥अव०१॥