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(३९) गुन सुखदाय ॥ सुज्ञानी०२॥ तजि विभाव निजभाव भाय ज्यों हावे शिवपुर राय ॥ सुज्ञानी० ३॥ सतगुरु सोख गहो अब मानिक फेरिन भव भटकाय ॥ सुज्ञानी०१॥
३८ पद-राग देश तथा ईमग । जिन आगम मो मन भावे । म्हाने दुश्रुत नाहिं सुहाव। जिन टेक ॥ स्यादवाद पदकरि शोभित है सब संदेह नसावे |जिन०॥१॥ भूल अनादी तुरत मिटावे निज पर तत्त्व लखावे । हित अरु अहित सुतिन कारण विच हेयाहेय जतावेजिन०२॥ देव धर्म गुरु रूप दृढ़ावे विषय भोग विरचावे । सम्यक दर्शन ज्ञान चरण मय शिव मारग दरसावे ॥ जिन० ३॥ याकलि माहिं प्रगट श्रुत मानों देव सुगुरु यतरावे। मानिक जे सरधान धरत तिनकों भवसिंधु तरावे ॥ जिन० ॥१॥