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( ३३ ) तम दुर्लभ है संसार ।। कर० ३॥ नीठिकरि अब बड़े भागनि आयो जगत किनार । तत्व रुचि करि करहु मानिक सफल नर अव. तार । कर०४॥
३२ पद-राग झंझोटी ॥ आतम रूप निहारो शुद्ध नय आतम रूप निहारा हो ॥ टेक ॥ जाकी विन पहिचान जगत में पाया दुःख अपारा हो। आत० १॥ बंध पर्स विन एक नियत है निर्विशेप निरधोरा हो । परतें भिन्न अखि न्न अनोपम ज्ञायक चिन्ह हमारा हो । आत०२॥ भेद ज्ञान रवि घट परकाशत मिथ्या तिमिर निवारा हो । मानिक वलिहारी जिन की तिन निज घट माहि सम्हारा हो ॥ आत० ॥
३३ पद-राग गीड मल्हार हिंडोरा जगत हिंडोरनारे घालो आली मोह