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( ३४ ) कदम तरुडार ॥ जग० ॥ टेक ॥ कुमति कुरमनी चिदानंद दंपति झूलत करि मनुहार ॥जग०१॥ चहंगतिगमनजुडोरीजामें बड़ीयहुत दुखकार । जहां पच इंद्रिय सखी झुलावत झोकन नाहिं सम्हार ॥ जग०२॥ भरम भाव वादर उमहत तहां वरसत हैमद बार । योग चपल तहां चपला चमकत विधि शुभ अशुभ यार ॥ जग० ३॥ इहि विधि अनंतकाल झलत जिय पायो दुःख
अपार । मानिक चतुर पुरुष जानों जिनि __ यह झूलन दियो टार ॥ जग०४॥
३४ पद-होरी काफी में ॥ जिन मत तिन अजहं न पायो । जिन्हें कगरुनि बहकायो । जिन० ॥ टेक॥ नरभव सथल सुकल जिन वृष लहि पैविपरीत गहायो । हिताहित ज्ञान नसायो । जिन० १॥ निर्विकार जिनचंद छवीकें चंदन ले लिप