________________
(१६) हित अहित लखैना ॥ टेक ॥ मोह वारुणो पी अनादित आपा पर परखैना ॥ निन १॥तन धन गृह सेवक परिजन जनये परप्र. गट दिखेना ॥ तिन० २॥ देव कुदेव सुगुरु कुगुरादिक इन में भेद गिनेना ॥ तिन०३॥ शिव सुखदानी श्री जिन बानी ताका स्वरस चखैना ॥ तिन०४॥ हित के कारण साधर्मीजन तिनसों नेह करैना ॥ तिन० ॥ मानिक ऐसे जीवनि कूलखि भवि विल खे हरखैना ॥ तिन०६॥
१६ पद-राग सोरठ तालदीपचंदी ॥ आकुल रहित होय इमि निशिदिन कीजे तत्व बिचारा हो ॥ टेक ॥ को मैं कहारूप है मेरो पर है कौन प्रकारा हो॥ आकुल०१ को भवकारण बंध कहाँ को आत्रव रोकनहारा हो । झरत कर्म बंधन काहे तेस्था