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नक कौन हमारा हो ॥ आकुल०२ ॥ इस अभ्यास किये पावत हैं परमानंद अपारा हो । मानिक ये ही सार जानिके कीजे वारंवारा हो । आकुल० ॥३॥
१५ पद-राग मझोटी सुधिर चित्त करि अहनिशिनिष्ट्रय कीजे येम विचारा हो। टेक ॥ मैं चित ज्ञान रूप है मेरो पर जीव निरधारा हो । सुथिर० ॥ भ्रम भव कारण दख वंधन सम संवर है सखकारो हो। चिर विभावता झरण निर्जरा सिद्ध स्वरूप ह. मारा हो ॥ सुथिर० २॥ धनि धनि जनजिन यह विचार करि महा मोह निरबारा हो। तिनके चरण कमल प्रति मानिक युगल पाणि शिर धारा हो ॥ सुधिर०३