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जय वर्धमान
विजय : हाँ, हम लोगों का यह सौभाग्य है । (संकेत कर) ये मुमिन्न हैं और
___ में विजय हूँ। इस शुभ मूचना के लिए अनेक धन्यवाद । पहला : नो हम लोग चल रहे हैं । हमें घायलों की सेवा करनी है। दूमग : घायलों में एक तो मेरा विरोधी रहा है। किन्तु जब वह हाथी
के पैरों के नीचे आ गया तो कुमार वर्धमान ने मुझसे कहा कि मुझे ही
उसकी सेवा करनी चाहिए। पहला : तो फिर चलो! दूसग : हाँ, चलो। (विजय और सुमित से) अब हमें आज्ञा दीजिए ! दोनों : जय वर्धमान ! (प्रस्थान) सुमित्र : इन लोगों ने अच्छी सूचना दी पर यह विचित्र बात अवश्य है कि
कुमार वर्धमान ने बिना किमी शस्त्र के उस मतवाले हाथी को वश
में कर लिया। विजय : विचित्र अवश्य है। सामान्य व्यक्ति तो ऐसी स्थिति में अपना धर्य
भी खो बैठता है। उन्होंने एक क्षण में हाथी का पागलपन दूर कर दिया । वे किमी अलौकिक शक्ति से विभूषित वीर पुरुष ज्ञात होते
सुमित्र : मचमुच वे वीर हैं । कुमार को इस वीरता की सूचना में महागज
मिद्धार्थ बड़े प्रसन्न होंगे। विजय : तो चलो, उन्हें सूचना दी जाय। समित्र : इस समय तक तो उन्हें सूचना मिल गई होगी। फिर भी चलो। हम
लोग भी महाराज की प्रसन्नता के भागी बनें। (नेपथ्य की ओर देख
कर) अरे, कुमार वर्धमान तो इसी ओर आ रहे हैं। विजय : हम लोगों के पास पुष्प-वर्षा के लिए पुष्प तो हैं नहीं, केवल जयध्वनि ही कर सकते हैं।
(कुमार वर्धमान का गंभीर गति से प्रवेश)