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पहला अंक
मुमित्र : कुमार वर्धमान की जय ! विजय : कुमार वर्धमान की वीरता की जय ! वर्धमान : (गंभीर स्वर में) जय किस बात की ? यह तो सामान्य बात है,
विजय ! पहले अपने आपको जीतना आवश्यक है। जो अपने को
जीत लेता है, वह संसार की प्रत्येक वस्तु जीत लेता है। मुमिन्त्र : निस्सन्देह आपने यह प्रत्यक्ष कर दिखाया । अभी दो नागरिक आये
थे। उन्होंने अभी हमें यह सचना दी कि आपने बिना अस्त्र-शस्त्र के उस पागल हाथी को अपने वश में कर लिया। उन्होंने कहा कि आपने उन्हें अपना धनुष-बाण देकर निश्शस्त्र होकर हाथी का सामना किया।
आपको किसी प्रकार का भय नहीं हुआ ? वर्धमान : जिसे आत्म-विश्वाम होता है, उसे किमी प्रकार का भय नहीं होता,
सुमित्र ! जिसे भय होता है, वह अपनी शक्ति मे अपरिचित रहता
विजय : तो आपने बिना आक्रमण किये ही हाथी को वश में कर लिया ? वर्धमान : विजय ! मनुष्य यदि हिमा-रहित है तो वह किसी को भी अपने वश
में कर मकता है। वात यह है कि संमार में प्रत्येक को अपना जीवन प्रिय है। इमलिए जीवन को सुखी करने के लिए मभी कष्ट से दूर रहना चाहते हैं। जो व्यक्ति अपने कप्ट को समझना है, वह दूसरे के कष्ट का भी अन मव कर मकता है। और जो दूसरों के कष्ट का अनुभव करना है. वही अपने कष्ट को ममझ मकना है। इसलिए उमे ही जीवित रहने का अधिकार है जो दुमगं को कष्ट न पहुंचाये, दूसरों की हिमा न करे । जो दूसरों के कष्ट हरने की योग्यता रखता
है, वही वास्तव में वीर है। विजय : आप दुमरों के कप्ट ममझते हैं। इसलिए आप मच्चे वीर है, कुमार !
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