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पहला अंक
दुसरा : मुझे तो ऐसा लगता है कि कुमार वर्धमान को अपने मस्तक पर
विटलाने के लिए ही वह हाथी मतवाला हो गया था । कुमार जैसे ही
उसके मस्तक पर वैटे कि वह शान्त हो गया। मुमित्र : हम लोग तो बड़े चिन्तित हो रहे थे कि वह मतवाला हाथी कुमार
पर भी कहीं आक्रणण न कर दे । विजय : हम लोग भी कुमार की रक्षा के लिए उनके साथ जाना चाहते थे
किन्तु उन्होंने हमें रोक दिया और अकेले ही दौड़ पड़े। पहला : उन्हें किसी से रक्षा की आवश्यकता नहीं है। वे अकेले ही सैकड़ों
हाथियों का सामना कर सकते हैं। सुमित्र : वह हाथी अब कहाँ है ? दूसग : कुमार ने उसे फिर गज-शाला में भेज दिया। जैसे ही हाथी शान्त
हुआ महावत पीछे से दौड़ता हुआ आया। कुमार वर्धमान ने उसे हाथी सौंप दिया और वे हाथी से उतर पड़े। नगर की जनता जय-ध्वनि
करते हुए उन पर पुष्प-वर्षा करने लगी। पहला : और हाथी मे उतरते ही उन्होंने गणपाल को आजादी कि जो अभागे
व्यक्ति हाथी के पैरों से कुचल गये हैं उनका शीघ्र ही उपचार किया
जाय। विजय : वास्तव में कुमार वर्धमान नर-रत्न हैं । दूमरा : उन्होंने पुष्प-वर्षा रोककर जनता से कहा कि वे जाकर घायल व्यक्तियों
की देख-भाल करें। पुप्प-वर्षा करने की अपेक्षा क्षत-विक्षत व्यक्तियों
की सेवा करना जनता का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए। सुमित्र : तो इस समय कुमार कहाँ है ? दुमग : वे सब को विदा कर यहाँ आते ही होंगे। उन्होंने कहा था कि उनके
माथी मुमित्र और विजय हमारी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। आप ही उनके माथी ज्ञात होते हैं ।
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