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जय वर्धमान
मुमित्र : तो पुरुषार्थ असंभव वातों में नहीं होता, विजय ! यदि कुमार वर्धमान कहें कि इन्द्रधनुष के रंगों का लक्ष्य वेध करो तो तुम इन पाँच बाणों से उन रंगों का लक्ष्य-वेध कर सकोगे ?
विजय : मुझ से तो संभव नहीं है और यदि संभव हुआ भी तो पाँच रंगों के लक्ष्य-बंध के बाद दो रंग तो शेष वच ही जायेंगे ।
मुमित्र : ( हंस कर ) उनका लक्ष्य-बेध कुमार वर्धमान कर लेंगे। (नेपथ्य की ओर देख कर ) अरे, कुमार वर्धमान इसी ओर आ रहे हैं ।
विजय : अच्छा ? आ रहे हैं ? अब उनमे लक्ष्य - वेध का रहस्य पूछो । (सुमित्र और विजय व्यवस्थित होकर सावधान हो जाते हैं। कुमार वर्धमान का प्रवेश । वे अत्यन्त सुन्दर हैं। आकर्षक वेश-भूषा | मुक्त केश, गंरिक उत्तरीय । अधोवस्त्र जैसे ब्रह्मचर्य की भाँति कसा हुआ । रत्न-जटित उपानह । हाथों में धनुष-बाण । )
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विजय
सुमित्र }
: कुमार की जय !
वर्धमान : जय पार्श्वनाथ ! ( क्रम से देख कर ) विजय ! गुमित्र ! तुम दोनों ने लक्ष्य - बेध का अभ्यास किया ? कहां-कहां लक्ष्य वेध किया ? (दोनों नीचे देखते हुए मौन रहते हैं ।)
वर्धमान : तुम दोनों मौन हो । मीन से भी लक्ष्य-बंध होता है । ( टहलते हुए ) जो अपशब्द कहता है यदि उसके समक्ष तुम मान रहे तो तुम्हारे शान्त हृदय का तीर अपशब्दों का चिह्न भी नहीं रहने देगा ।
सुमित्र : जिम तीर का नाम आप ले रहे हैं, वह क्षत्रियों के धनुर्वेद में नहीं है, कुमार !
वर्धमान : क्षत्रियों के धनुर्वेद में ? सुमित्र ! वह क्षत्रियों के धनुर्वेद में ही है । 'क्षत्रिय' का अर्थ जानते हो. क्या है ? जो क्षन में हिंसा से बचा