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प्रभु ने अपना वस्त्राभूपण
आकर यही उतारा। कुल-वृद्धा को सीप, कहा-यह
माता, सभी तुम्हारा॥
दो दिन का उपवास किया फिर
ज्ञान-विमल बिखराया। दीक्षा का सकल्प सुनाकर
परम लाभ को पाया।
कुल-वृद्धा ने प्रभु के सम्मुख
आशीर्वचन सुनाये। 'प्रभु के पथ पर विघ्न न होगे'
दृढ विश्वास दिलाये ॥
पञ्चमुष्टि-से लोच किया फिर
प्रभु ने सबके सम्मुख । 'जय हे, जय हे'-वोले जन-जन
होकर उनके अभिमुख॥
86 / जय महावीर