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शिविका एक शुभग थी जिसमे
बैठे प्रभु मन भावन। परिजन औ पुरवासी बैठे
उनके पग मे पावन ।।
देवो औ इन्द्रो ने मिलकर
दिव्य पालकी लाई। करते जय का नाद स्वय ही
पहले उसे उठाई।
प्रभु के महात्याग का आशिष
महिमा सिर पर लेते। जुटे हजारो भाव-भरे सव
उन्हे विदाई देते।
शुभ्र विजय मुहूर्त से बढकर
जात-खण्ड सव आये। 'जय-जय' का स्वर गूंजा, सवने
प्रभु के दर्शन पाये॥
ज्य महावीर / 85