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'राज महल मे जय-जय गूंजा - गूंज उठी शहनाई ।
सिंह द्वार पर मधुर स्वरो मे - वजने लगी
लोग-बाग सब आ आ कर थेस्वय बधाई
विप्र महाजन दान नृपति सेमुँहमाँगा ही
देवलोक की स्वय देवियाँ - दौडी भू पर
प्रभु का कर शृगार उन्हे फिर
नूतन पर
वधाई ॥
44 / जय महावीर
देते ।
दिव्य प्रकाश धरा पर फैला -
भागा तिमिर भुवन का । सुरभित पवन प्रवाहित होकर
आता था नन्दन का ||
लेते ॥
आई |
पहराई ॥