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होकर सब अभिपुष्ट वहाँ से
देवलोक मे आ के। प्रभु का सव गुण-गान सुनाया
उनका मगल गा के ।।
आकर किया प्रणाम इन्द्र ने
मन से पुलकित होकर। अपनी दिव्य किरण से प्रभु के
पावन पग को धोकर ।।
उनको लेकर तत्क्षण फिर वे
आये मेरु-शिखर पर । सजा वही पर जन्म-लग्न का
पहला उत्सव मनहर ।।
मेरु-शृग के ऊपर सुन्दर
__एक शिला पर लेकर। वैठे इन्द्र स्वय थे सवको
शुभ निदेश कुछ देकर ।।
-जय महावीर / 45