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मन से क्षण मे हुए अचम्भितरोम-रोम तक हो आनदित। बोले राजन शुभ्र प्रहर हैबडा दयामय परमेश्वर है।
क्या बतलाऊँ यह सब क्या हैमिला तुम्हे धन त्रिभुवन का है। जो कहता हूँ, सच कहता हूँज्ञान-ज्योति मे ही रहता हूँ।
वीणापाणी जो कहलातीज्ञानमयी जो कुछ बतलाती । वही तुम्हे कहता हूँ सुन लोवात हमारी मन से गुन लो।
पुत्र रत्न जो होगा तुम कोनप्ट करेगा भव के तम को। सर्व श्रेप्ठ वह ज्ञानी होगाआत्मिक वल का मानी होगा।
38 / जय महावीर