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विमल अग्नि निर्धम जगायेसुख-सौभाग्य भुवन के आये । ये चौदह अनमोल सुहानेसपने देखे थे त्रिशला ने 1
देख हुई थी पुलकित मन मे सुख के आँसू गिरे नयन मे । आकर पति के पास हृदय से प्रीति-सजोये नेह-निलय से ।
36 / जय महावीर
बोली- महाराज की जय होपरम भक्ति की सदा विजय हो । राजन, मैंने खुद ही देखे है कल चौदह सपने |
अपने
इतना कह वह फिर बतलातीएक-एक कर नाम बताती । हँसकर पूछा -अर्थ भला क्या ? है सपनो की नयी कला क्या
?