________________
चाँद गगन में मुस्काता थामन का मोद बढा जाता था। सूर्य देव भी नभ मे आयेभू के तम को दूर भगाये।
ध्वजा गगन मे फहराती थीकीर्ति भुवन की वढ जाती थी। रौप्य कुम्भ था सुन्दर-मनहरचम चम जैसे स्वय दिवाकर ।।
पुन दृगो मे आया सुन्दरसुरभित मगल पद्म सरोवर । पुन. क्षीर सागर लहराया क्षण-क्षण का आनन्द बढ़ाया।
देव विमान दिखा फिर ऊपर महामोद मे पुलकित सत्वर । रत्न राशि की ढेर लगी थीनयन-नयन में प्रीत जगी थी।