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पुष्पित-सी थी पूरी नगरीकमल-नाल-सी ऊपरउभरी। हर्षित थे सव चहल पहल मेअपने सुरभित रूप धवल मे ॥
नव उमग-सी लहराई थीसुख की विमल घटा आई थी। त्रिशला अपने राज भवन मेतद्रिल सोच रही थी मन मे॥
प्रभु की मनहर-सुखमय गाथासाधु-जनो ने जिसे कहा था। सहसा लगा कि बाहर मन सेकुछ है निकला उसके तन से ।।
और पुन वह उर में आयामानो उसने सरवस पाया । गर्भ-परावर्तन का क्षण थापल-पल सुन्दर मन भावन था।
जय महावीर / 33