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सुख के बाजे नित बजते थेमन से सुन्दर सब सजते थे। कोट-कँगूरे सब थे सुन्दरसुन्दरता थी भीतर बाहर ।।
जहाँ जरा भी आँखे जातीसुन्दरता से ही टकराती । रेशम जैसा कण-कण कोमलनयन-नयन मे कज्जल-काजल ।।
कही न कोई तनिक मलिन थेसबके ही मन भावन दिन थे। सव थे सुन्दर, हृदय खिला थाफूलो को मकरन्द मिला था ।।
वागो मे कोयल नित गातीमधुपावलियाँ थी मँडराती। तरह-तरह के फूल सलोने खिले हुए थे कोने-कोने ।।
32 / जय महावीर