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सयम की तो बात न पूछोकैसी थी वह रात न पूछो । ज्ञान तपस्या सब दूभर थेतिमिराच्छन्न-सघन घर-घर थे।
लोभ ग्रसित धरती रोती थीपूरी साध नही होती थी। दीन-हीन सब नारी-नर थेदुख से पीडित अन्तरतर थे।
तभी किरण-सा कोई आयाभव को निर्मल शुभ्र बनाया। सब कहते वे तीर्थकर थेज्ञान-किरण नव ज्योति प्रखर थे।
नयी साधना जग मे जागीदुख की रजनी तत्क्षण भागी। यही साधना उज्ज्वल होकरभव को ही कल्मप से धोकर ।
18 / जय महावीर