________________
तेजपुञ्ज हो मूर्त रूप मेतीर्थकर के ही स्वरूप मे । मिली जगत को निर्मल वनकरदिव्य प्रभा-सा पल-पल भास्वर ।
-
आकर जग को मार्ग दिखायाभव के तम को दूर भगाया । जग की पावन - पुण्य भूमि पर -
सत्य-तपस्या रूप उतर कर
आत्म-ज्ञान कल्याण बतातेजन-जन को है सुखी वनाते । इनके निर्मल पुण्योदय से - तम पर अविरल ज्योति - विजय से ।
भव को निश्चय मान हुआ हैजन-जन का कल्याण हुआ है । हुई सृष्टि पर वृष्टि विभव कीज्योति जगी नवभव उद्भव की ।।
जय महावीर / 19