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प्रभु के स्वीकृत अभिग्रह सारेपूर्ण यही थे होते । सती पवित्र हुई थी चदनमन को धोते - धोते ॥
विपद अनेको जीवन मे थीविकट रूप धर आई । लेकिन वाला रही धैर्य से कभी नही घबडाई ॥
तलघर मे मूला ने डाला - कष्ट अनेको देकर |
किन्तु आज चन्दन थी दर पर - प्रभु की भिक्षा लेकर ।
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प्रभु तो कठिन तपस्या की ही
मूर्ति स्वयं भू पर ।
कुछ भी शेप अप नही था
उनके पग के ऊपर ॥