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ऐसे ही जब श्रावस्ती मेमहावीर थे
आये ।
गोशालक ने अग्नि-शूल थेउन पर तान चलाये ॥
गोशालक खुद कहता, मैं हीतीर्थकर हूँ जग मे । कही है
कोई बाधा नही
मेरे जीवन मग मे ॥
प्रभु ने उसकी सारी गति-मति
क्षण भर में पहचानी | मेरा धर्म-शिष्य था, लेकिनअब भी है अज्ञानी ॥
सुनकर गोशालक चिल्लाया
अभी भस्म कर दूंगा । अग्नि-धूल यह तेरी खातिर अभी तुरत मे लूंगा ||
जय महादी 1121