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कुछ क्षण बाद वहाँ जव आया
देखा बैल नहीं थे। कीन बताता, बैल वहाँ से
भागे अभी कही थे।।
उसको क्रोध जगा वह प्रभु को
___ मन-ही-मन धिक्कारा। कठिन काठ की कील श्रवण मे
ठोकी, वह हत्यारा॥
फिरभी निश्चलध्यान लीन प्रभु
___ डिगे न अपने ब्रत से। रहे अचल ध्यानस्थ अखडित
पुण्य-सिन्धु शाश्वत से॥
कुछ दिन वीते, खरक वैद्य ने
उनका शल्य निकाला। पाप-कर्म के क्षय का अन्तिम
पाप भस्म कर डाला। xx
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100 जरा सतातीर