________________
कह कर उसने तेजो लेह्या
छोडी मुंह विचका के। लेकिन है आश्चर्य, मग खुद
अपना काल बुला के॥
कर प्रदक्षिणा अग्नि-शूल ने
देखा प्रमु को मन से। किन्तु जलाया गोशालक को
उसके अशुभ लगन से॥
प्रभु के सारे पाप पूर्व के
क्षय निश्चय हो आये। ध्यानलीन वे परमावस्था
मे थे दृष्टि गडाये॥
जग का हो कल्याण निरतर
ध्यान लगाये रहते। ज्ञानामृत की वर्षा होती
जब भी वे कुछ कहते॥
122/ जय महावीर