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Chhotadiwanji Jain Temple Granth Bhandar
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दुख कर रहित अर केवल ज्ञान करि उधोत करि है सल्लेखना जिनने ऐसे जिनवर के ................. हमारा भलै प्रकार मन वचन काय करि नमस्कार
Scribal remarks :
सन उगणीस जु अधिक षट् संवत् विक्रम भूप । माघ कृष्णा द्वादशकीयो प्रारम्भ अधिक अनुप । आठ अधिक उन्नीस में संवत भादवामास । शुक्ल दोजिपूरन भई देशवचनिका जास ।। चौपई “ सब नगरनि के भूप समान, नगर सवाई जयपुर थान ।
रामसिंह वलधर भूपाल, सब वर्णाश्रम को प्रतिपाल । जैनीलोक तहां वहु वसे, बद्धिवंतहु धन करि लसें । तिनमें तेरापंथ विख्यात्, शुभमिन को जहाँ वहुसाथ । जिन भाषित श्रु त में अतिराग, न्याय सिद्धान्त पढ़" ३ भाग । तत्वार्थ की चर्चा कर, नय प्रमाण बिन चित नहीं धरै । खण्डेलज श्रावक कुछ धाम, तिन मैं एक सदासुख नाम । गोत्र कासलीवाल जु कहे, नित जिनवानी सेवन चहै । ताके मन में भयो हुलास, सेवु' आराधन दुःखनास । जो आराधन मो मन वसै, तो संसार दूखसब नस । आराधन भगवती ग्रन्थ, जा में मोक्ष गमन को पथं । शिवाचार्य कृत प्राकृत लीं, वांचत मिथ्या भव जु नसें । जा कु गणधर मुनि नित चहै, सो पाराधना यारौं लहें । जाके सुनत निज प्रातम जोई, अनुभव करि परमात्मा होई ॥ मैं या अनुभव जब किया, मनुज जनम फल निज सुख लिया । काल अनन्त वितीन जु भया, अाराधन अमृत अब पिया ।। याकुं चित में धारण किया, तब मेरा मन अति हुलसिया । देश वचनिका या में जो होय, तो याकु वॉचै सब कोय । मेरा हित होने या विचार उधम मैं किया, मंद बुद्धि माफिक लिख दिया । बांचि पढ़ो अनुभव निति करो, पाप पूज मल नित प्रति हरो। मेरा हित होने कू और, दिखे नहीं जगत में ठोर ।
यात भगवती शरण जुग ही, मरण पाराधन पाऊँ सही। ... हे. भगवती. तेरे परमाद, मरण समै होहु विषाद ।
पंच परम गुरु पद करि ढोक, संयम सहित लहुँ पर लोक। : हरो दुख जगत के सकल, करो सदा सुख कदं । ... - लसो. लोक में भगवती, आराधना अमंद ।।