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________________ ३७६ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. ये मनना पर्याय पलटाणा के तुरत केवलज्ञान उपन. ए वात सांजली श्रे णिकराजा प्रसन्न थया कह्यु के के ॥ सप्तमायुदलं कृत्वा, प्रश्नचंश्नृपो यथा॥ संक्षिवा मनसा सद्यः, केवलं लब्धितो वरं ॥१॥ मन एव मनुष्याणां, का रणं बंधमोक्ष्योः ॥ यथा आलिंगिता कांता, तथा नालिंगिता सुता॥ सप्तमे नरके याति, जीवस्तउलमत्स्यवत् ॥ २ ॥ इति ब्यासीमो दृष्टांत ॥ ७३ ॥ हवे जे मुर्ख होये ते पोताना अवगुण न देखे तेनो व्यासीमो दृष्टांत. ॥लिप्त्वोर्वी रविमर्चयत्यविरतं स्वे गोमयेनाबला, विदयुक्तेन किलैकदा ह कुरुते नत्वार्चनं वा रवेः ॥ नासाये करयुग्ममेत्य दिवसे उन्धमायाति सा, हायं गूथमयः खगोदय इतोऽनूत्स्वागुणोऽज्ञायि नो॥॥ अर्थः-को एक स्त्री नित्य प्रतें गायनांबरों करी घर लीपीने पनी नित्य सूर्य देवने पूजे सामा हाथ जोडीने दंमवत प्रणाम करे. एम प्रति दिवस करतां एक दिवसें उतावलें पाउली रात्रे बाणने बदले हाथमां विष्ठा आवी तेणें करी घर लीपी सूर्यने दंभवत करतां हाथ जोडतां हाथ नासिका पासें श्राव्या: तेमांथी मुर्गध यावी, त्यारे कहेवा लागी के हा इतिखेदे बाज जे सूर्य न दय पाम्यो , ते विष्ठामय नग्यो डे, एवी गाल दीधी. वली कहेवा लागी के, दहाडे दहाडे सेवा करतां पण पापीनो जण्यो साहामो दुर्गध गंधवा लाग्यो एवी रीतें खोटो सूर्यने दोष प्राप्यो. परंतु पोतानो प्रत्यद दोष हतो तेनो विचार न कस्यो. तेम जे मूर्ख होय तेपण पारका अवगुण देखे, पण पोतानी नूल कांड देखे नहीं ! कह्यु के श्लोक ॥ कर्मणां दीयते दोषो, न दोषो दीयते शिवे ॥ यथैकया पुरा दत्तः, सूर्यस्य सूर्यनक्तया॥१॥ हवे नरसा साथे निरसुं थाई नहीं तेना ऊपर चोख्याशीमो दृष्टांत. ॥कत्वोत्सर्गमलं शिलोपरि मुनिस्तस्थौ हि निजको, वक्त्यागत्य वि मुंचतां पटशुचिं कुर्वे ततो नाषणम् ॥ दूरे तेन रुतस्तदार्षिरजको जनौ गले नेदको, निर्यथस्य च तस्य नो यदि तयोर्मा रह जाने न तं ॥५॥ अर्थःएक नदि कांते शिला ऊपर को एक मुनि कासग्ग ध्याने उनो रह्यो द तो, तेवामां एक राजानो धोबी आव्यो, तेणे ते साधु ने कह्यु के आशि लाथी उठ, माहारे आंही वस्त्र धोंवां जे. तो पण ते मुनि कांश बोल्यो न ही. त्यारे ते धोबियें रीशथी ते मुनिने धक्को मारी नीचें नांखी दीधो ते थी ते मुनिने पण रीस चडी, अने वेहुजण माहोमांहे बाथोबाथें थाव्या.
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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