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दृष्टातशतक. लब्धं तेन सुकेवलं जिनवचः श्रुत्वैति शं श्रेणिकः ॥७३॥ अर्थः-एकदा श्रेणिक राजा श्री माहावीर प्रजुनें पूजे जे के हे माहाराज ? हमणां प्रस नचं राजा दीदा ले वनमां काउसग्ग ध्यानमा सुर्य सामी दृष्टी राखी ने एक पगें नना , माटे जो हमणां आनखो बांधेतो क्यां जाय ? जग वाने कह्यु जे प्रथम नरकें जाय पनी बीजी त्रीजी चोथी पांचमी बहीथ ने यावत सातमी नरकें जाय. एम क्रमे क्रमे पूबतां कर्तुं त्यारें श्रेणिकरा जा फरी पूजे के हे माहाराज, एहवा तपस्वी ज्यारे नरकें जाय त्यारे धर्माचरण कोण करशे ? ए वात सांगली श्री वीरनगवान कहे के ताहा रा सुमुख अने उर्मुख नामना जे दूत तेना मुखनां वचन सांजलीने, मन नुं संग्राम करे ने तेथी नरकें जाय. वली पाचुं पूब्युं के हे माहाराज! हमणां आयु बांधे तो ते क्यां जाय तेने जगवानें कडं के प्रथम देवलोकें जाय. एम बीजे, त्रीजे, यावत पांचमा अनुत्तर विमान पर्यंत कयुं. एवामां जगवानना समवसरणथी देवता जवा लाग्या. तेवारे श्रेणीकें पुब्यु के देवता किहां जाय ? तेने जगवानें कडं के प्रसन्नचंद राजषीने केवलज्ञान उपन्यु डे. तेनो उत्सव करवाने अर्थे जायचे त्यारे राजाये मनमां चिंतव्यु जे जगवं तनां वचन तो अन्यथा थाय नहीं फरतापण नहोय, निरधार वचन हो य पण पहेलो तो नरकमां जवा कह्यो. अने पनी देवलोकमां जवा कह्यो वली हमणां केवलज्ञान उपर्नु ते संदेह टालवा नगवानने पूब्युं तेवारे न गवान कहे के प्रथम जे में कह्यु के नरकमां जशे ते ताहरा उर्मुख अने सुमुख दूतनां वचन सांजली मनोयु६ करतो हतो तेणेकरी नरकनो ज नार थात पण ते मननो संग्राम करते थके हथियार सर्व नांखी रह्यो त्यारे विचारां के जे अवसरें जे अाव्युं तेज हथियार माटे हवे मारा माथानो टोप के तेज नां. एम धारी माथे हाथ घाव्यो तेवारे माथोतो मुंमित केश लुचित माथे टोप तो देखाएं नही. तेवारे विचास्यं जे अरे आगुं में तो दीदा लीधी ने अने आ संग्राम ते वलीशो ममियो ले. एम चिंतवी म नःसंग्रामथी उसरवा मांमधु. त्यारे देवलोकें जाय एवा परिणाम थया ए म करतां अनित्य नावनायें चढयो जे आ कोना पुत्र, कोना नाम, कोना गाम, केना कोट, कोहोर्नु राज्य, एमां माहारूं कांइनथी ढुंए सर्व वोसरा बुंटुं अने वीर नगवान पासें जश्ने ए कर्म लाग्युं ते आलोचू एम जावना