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श्रीनुवननानु केवलीनो रास. १७ तिणियान ॥ ६ ॥ आंखें पमल जिम ऊघडे, फलके ज्योति अनूप ॥ तिम मुनि निरखे ते तदा, लोकालोक सरूप ॥७॥ सिदि सौधनुं तेरमुं, पगथीनं पाम्युं ताम ॥ संयोगि केवलि गुण स्थानकें, पहोतो सो गुणधाम ॥७॥ तव नृप चारित्र धर्मर्नु, सैन्य सकल सम काल ॥ पाम्युं परमानंदने, वैरी थते विसराल ॥ए ॥ सर्वगाथा ॥ १६७५ ॥
॥ ढाल चोराणुंमी॥ ॥ कमल रस फूंबखडां ॥ ए देशी ॥ तिवार पबी वली केवली, मोहा दिकना सुविशेष ॥ सकलजनसुखकरू, मर्म प्रकाशी लोकने, बोडवे देई उपदेश ॥ स०॥ १ ॥ विचरतां वसुधातलें, बदु जननां मोह बंध ॥ स०॥ गामो गामें डोडावतां, फेडतां नवना फंद ॥ स ॥२॥ विहार करंतां या विधा, अनुक्रमें आणे देश ॥ स ॥ सांप्रत तुम सदु लोकने, देवाने उप देश ॥ स० ॥३॥ बूमविया बहू लोकजे, तिणे गुण निप्पन्न ॥स०॥ नुव नजानु नाम तेहy, धरियुं सही ज्ञाननुवन्न ॥ स०॥४॥ समजो ते ढूं केवली, श्म सांजली अवनीस ॥ स ॥ चंडमौलि चित्त चमकियो, तव क ती सुजगीस ॥ स ॥ ५ ॥ पाय लागी प्रणमी कहे, साधु साधु तुमे स्वामि ॥स ॥ नगवन पाउधास्या नले, अम तारवा हित काम ॥ स० ॥ ६ ॥ सकल सिहांतनुं रहस्य ए, वारु तुमारं चरित्र ॥ स० ॥ कही थमने पा वन कस्या, प्रनु तुमे पुण्य पवित्र ॥स॥७॥ तव केवली कहे तेहने, राजन निजयाख्यान ॥स०॥ निजमुखें कहेवू नविघटे,थाए निजव्याख्यान ॥सन ॥ ७॥ निज गुण कहेवा निज मुखें, निषेधे नीति ग्रंथ ॥ स ॥ कीर ति ते जे बीजो कहे, पौराणिक ए पंथ ॥ ॥ स० ॥ ए ॥ पण तुमने हित कारणे, खरो कह्यो एह संबंध ॥ स ॥ संदेपे में माहरूं, नाजे जे नवबं ध ॥ स० ॥ १०॥ उदयरतन कहे आगमें, बोल्या जे जे बोल ॥ स ॥ चोराणुंमी ढालें ते सहहो, चित्त धरी रंग चोल ॥ स० ॥ ११ ॥
॥ दोहा ॥ विस्तारें जो वर्णवू, चंमौलि सुण राय ॥ तो कोडि पूरवने आउखे, पूलं एह न थाय ॥ १ ॥ केवल ए जे कारणे, महाराथीज निहा ल ॥ प्राहें संसारी जीवनी, सदुनी एहज चाल ॥ २ ॥ सर्वगाथा १६ए
॥ ढाल पंचा[मी॥ ॥ बिंदली मन लागो॥ ए देशी ॥ चौद लोक च्यारे गति, जगमांहि स