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श्रीनुवननानु केवलीनो रास. १७३
॥ ढाल एकांणुमी॥ ॥ हो रे वणजारीडा ॥ ए देशी ॥ इणि परें कीधी रे नवनी बावली, कुलनी नमतां बहु कोडि हो ॥ दो रे सुण राजीया ॥ चोरासी लख जी वा योनिमां, पग पग पाम्यो तूं खोड हो ॥ १ ॥ हो ॥ श्री निलयनगरें तूं थयो एकदा, वैश्रमण नामें वणीक हो ॥ हो० ॥ धर्मनी नपनी तिहां धीपणा, श्लोक सुणी एक रमणीक हो ॥ ५ ॥ हो० ॥ यतः ॥ स्वजनध ननुवनयौवन, वनिता तत्वाद्यमनित्यमिदमखिलं ॥ ज्ञात्वापत्राणसहं, ध मं शरणं नजत लोकाः ॥ १ ॥ कुधर्मनी बुद्धि तव आमी फरी, त्रिदंमिन तापस कीध हो ॥ हो० ॥ एकेडियादिकमां वली अवतारीने, दुःख बदुलां मोहें दीध हो ॥ ३ ॥ हो ॥ पुदगल अनंता परावर्त्या वली, नरनव लही अंतरालें हो ॥ हो ॥ कुधर्म बुद्धिने उपदेशेकरी, जिहां तिहां पड्यो जंजालें हो ॥ ४ ॥ दो० ॥ आलस उघादिक सुनटें मली, अल गो नाख्यो नथेडि हो ॥ हो ॥ तिमज अनंता पुदगल परावा , कुदृष्टि लागी तिहां केडि हो ॥ ५ ॥ हो ॥ विजय वर्षनपुरें नंदनने नवें, आयु टालिने सात हो ॥ दो ॥ कर्म ते द्यां यथाप्रवृत्तकरणे, खडगें तिहां करी ख्यात हो ॥ ६ ॥ हो० ॥ एक कोडाकोडि सागरनी स्थिति, सा ते रह्या ते शेष दो ॥ हो० ॥ ग्रंथी नेद लगें पहोतो जई, पण मोहें मेला वी अशेष हो॥ ७॥ दो० ॥ अश्रधानने राग शेषादिकें, पाडो वाली तिणें ताल हो ॥हो॥ निगोदादिकमां तिमहिज फेरव्यो, कह्यो न जाये ते काल हो ॥ ७ ॥ हो ॥ते वली मलयपुरे विश्वसेनने, नवें करी ग्रंथी नेद हो ॥ हो ॥ अपुरव करण खडगतेणे बलें, आगे वली धरी उमेद हो ॥ ॥ ए ॥ हो ॥ अनिवृत्तिकरण दंम उसारीने, मोहादिक वेरी महा मन हो ॥ हो० ॥ सम्यग् दर्शन मंत्री नेटीन, अवसर पामी अवन्न हो ॥ १० ॥ दो० ॥ कुदृष्टि रागें तव दीधो दगो, सुनगनवें वली सोय हो ॥ दो० ॥ स्नेह रागें वली समकित दारित, जुगतें विचारी तुं जोय हो ॥११॥हो॥ विषयरागें वली सिंहतवं नवें, जिनश्रीएं शेष विशेष हो ॥ हो ॥ ज्व सनसिख को कुबेरें मानथी, पदमें माया बलेण हो ॥ १२ हो० ॥ सोमदत्त लोनें एम अनेक नवें, ताहरे जीवें राजन्न हो ॥ हो ॥ मोह रा जाना सुनट तणे बलें, हायुं समकित रतन्न हो ॥ १३ ॥ दो० ॥ देशविर