________________
श्रीनुवननानु केवलीनो रास. २६३ व इम ब्यासीमी, ढाल ए में बोली रे ॥ संसारमा धर्म सार ; जु अंतर खोली रे ॥ न ॥ १३ ॥
॥ दोहा॥ ॥ तीर्थ तीर्थकरनी तिहां, जगति करी तिणे नाव ॥ पुण्योदय पोढो कीयो, मुनिने सीस नमावि ॥१॥ सुरपदनां सुख जोगवी, तिहाथी चवि ने तेह ॥ कमल पुर नामें पुरी, वारू पूर्व विदेह ॥ २ ॥ श्रीचं नामें नृप तिहां, कामिनी कमलातास ॥ अंगज तेहनो कपनो, नानु नामें ते खास ॥३॥ पूर्व परें बाल कालथी, धरतो तिमहिज धर्म ॥ पुण्योदयने पेखतो, करे सदा गुन कर्म ॥ ४ ॥ अनुक्रमें नोगवी राज सुख, पुत्रने आपी पाट ॥ दीक्षा ग्रही तिणें मोह दल, दूर कयुं दंह वाट ॥ ५ ॥ संयम सूधुं पा लिने, अंते अणसण धारि॥ नवमें ग्रैवेकें सुर थयो, ते नानु अणगार ॥ ६॥ त्रीस सागरोपम आउखो, पाली पूर्व विदेह ॥ पदम पुरें तें सुत थ यो, सीमंतक नृप गेह ॥ ७ ॥ राजवियां सिरसेहरो, इंइदत्त अनिधान ॥ राज्य तजी संयम नजे, तेमहिज ते तिणि थान ॥ ७॥ दीण पमाडीमो ह दल, पुण्योदय करि पुष्ट ॥ अंते अणसण कचरि, दूर कस्या अरि उष्ट ॥ ए॥ मरण समाधे ते मरी, सर्वार्थ सिद्धि विमान ॥ अहमिंद सुरपणे ऊपनो, महार्दिक महा रिहिवान ॥ १०॥ सर्व गाथा ॥ १४६५ ॥
॥ ढाल व्यासीमी॥ ॥धण समर्थ पीन नान्हडो॥ ए देशी ॥ सकल मंगल जय दायिनी, चारित्र धर्म राजानी सेव ॥ नुवन नानु कहे केवली, फले तेहना नृप सु ए तुं हेव ॥ स० ॥१॥ एहज गंधिलावती विजयमां, इंइपुरीथी अधिक अ नूप ॥ चपुरी नामें पुरी, अकलंक नामें राजा तिहां नूप ॥ स० ॥२॥ सकल नूपाल मौलि श्रेणे, पूजित छे जस पदभरविंद ॥ सुजग समृद्धि सक्ने करी, अवनि तल उपे जिम इंइ ॥ स० ॥३॥ जे श्रीजिनपदपंकजें, मधुकरनी परें रहे मगन्न ॥ देवी ने तेहने सुदर्शना, शीला जेहने लागी लगन्न ॥ स ॥॥ धवल समकितने धारिणी, सुपनमांहि ते देखी सिंह ॥ उज्वल शसिसो एकदा, वदन प्रवेश करतो अबीह ॥ स० ॥ ५॥ ते इं इदत्त अणगारनो, तिहाथी जीव चवी ते तास ॥ उदरें आवी कपनो, पु त्र पणे पहोती मन आस ॥ स० ॥ ६ ॥ तव सा हरखी सुपन ते, जगत