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२५६ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. ॥जो० ॥ वारु वारु वबी वेगसुं, करो कारज रे तुमें कहो बो जेह ॥ जो ॥१२॥ ताहरी पण मन कामना, सिह था रे इम दीधी बाशीस॥ ॥ जो ॥ बहोत्तेरमी ढालमां,वदे उदय रे धरो हृदयमां हीस ॥जो॥१३॥
॥दोहा॥ ॥ तव सा पोती ते कने, पापणि परिकर लेह ॥ अवतायो तसु अंगमां, आलस प्रथम अह ॥ १॥ आलसने उदयें करी, संनारी सहि सूत्र ॥ अरथ लेतां आरति वधे, जिम तिम लवे उत्सूत्र ॥ २ ॥ तव बीजे त्रीजे दिने, थविरे थिर करि तास ॥ गुणवा बेसाड्यो जोरसुं, पण न गमे अन्या स॥३॥ सवेगाथा ॥ १३ ॥
॥ ढाल सीतोतेरमी॥ ॥ होजी फरमर वरसे लो मेह ॥ ए देशी ॥ होजी तव निशएं अशेष, परिकर प्रेष्यो ते कने हो लाल ॥ हो जी सम कालें सर्वांग, व्याप्यो न कहे तां ते बने हो लाल ॥ १ ॥ हो जी जनाएं ते जोर, वांसो घणुं मरडे वनी हो लाल ॥ हो जी हाथपग शिरने सर्वांग, कंपावे घने बलें हो लाल ॥ ॥ ॥ हो जी उंची धरी नुज दोय, कड कड मोडे बांगली हो लाल ॥ दो जी नूतावेशनी नांति, ध्रुजतो धरणी ढली हो लाल ॥३॥ हो जी अंगी पूठे वेदु पास, ढले ढीकलीनी परें हो लाल ॥ हो जी थविर पावे प्राण, पण अदर मात्र न उचरे हो लाल ॥॥ होजी निंद नीसामां आप, पले घj ते घेरियो हो लाल ॥ हो जी पडे पानी परें तेह, जिहां तिहां प्रमिला प्रेरि यो हो लाल ॥ ५॥ हो जी काष्टपरें कुनामें, सूवे संथारा विना हो लाल ॥ हो जी घोराएं घणुं जोर, चित्तमा न रहे चेतना हो लाल ॥ ६ ॥ हो जी पडिकमणे प्रनात, थविर नठाडे महा उखें हो लाल ॥ हो जी जनो करी इक दिन, गुरु सूत्र गुणावे मुखें हो लाल ॥ ७ ॥ हो जी पलकमांदि नूपीत, प्रमिलायें तव पाडियो हो लाल ॥ हो जी कुंहणी ढींचण ने शीश ॥ नांपीने नमाडि हो लाल ॥ ७ ॥ हो जी अदर न नणे एक, मुनि प ण मौन धरी रह्या दो लाल ॥ हो जी अतिव्यापी तव संघ, चिह्न न जाए जेहनां कह्यां हो लाल ॥ ए ॥ हो जी क्रिया करतां अनेक, चकुना चाला करे हो लाल ॥ हो जी केडि मुख कर ने पाय, मोडे पसारे बदु परें दो लाल ॥ १० ॥ हो जी निश नारीयें एम,नव नव ने नचावियो हो लाल