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श्रीनुवननानु केवलीनो रास. ॥ हो जी एहवां जोई आचरण, अचरज सदुने आवियो हो जाल ॥ ॥११॥ हो जी एवडी एसी बंघ, एम सुजाण सदु को वदे हो लाल ॥ हो जी सीत्योतेरमी ए ढाल, उदय वदे धरजो हृदे हो लाल ॥ १२ ॥
॥ दोहा ॥ ॥म निायें आचस्यो, आगम विण अन्यास ॥ विश् हस्त जलनी परें, गलवा लागु तास ॥ १॥ गहन अर्थ गया वीसरी, जिम जिम थाये बंश॥ तिम तिम लागे जहेरसो, आगम न गमे अंश॥॥ अमृतसी गणि उघने, अज्ञाने अहोराति ॥ सूई रहे नवि सलसले, वीसरी सूत्रनी वात॥३॥
॥ ढाल असोतेरमी॥ ॥ वेटी टोमर मनकी ॥ ए देशी ॥ तव गुरु जणे सो साधुळू, केवल .जणवा कांज वे ॥ घर बोरी घणे बायसें, पायो तें आगम राज बे॥ ॥१॥ जाग वे ज्ञानी जागनां, जागना वे श्रुत लागनां वे ॥ जा० ॥ देवे जो ऊर्गतिको हरी, सुर नर शिव सुख खानि बे, सो हाथें आया क्यों ह रियें, गुनसागर श्रुत झानि वे ॥ जा ॥२॥ नरक निशानी नींदको, मूढ देवे कौन मान बे ॥ चौद पूरवरस बोरके, कह्या मेरा सच्चे मान वे ॥जा॥ ॥३॥ तव तातो होयके सो बके, कहो उघाता है कौन वे ॥ तुमकों जूठ 'कहे किने, बूरी ए बात जबून बे ॥ जा० ॥४॥ गुरुजी हम तो गुनेहथे, सूत एते एते कन वे ॥ हम तो मगनहिं पाठमें, दजा न आवे दिन वे ॥ जा ॥ ५ ॥ गुरु तव चिंते चित्त में, अहो अहो एतो नवीन वे ॥थ वगुण एहमां कपनो, महाजूठ बोले मलीन बे ॥ जाण ॥ ६ ॥ विप घा रित परें अन्यदा, मूर्जित घायल समान वे ॥ बोलाव्यो बोले नहीं, उघ्यो सो असमान वे ॥ जा० ॥ ७ ॥ दिवसें सुपना देखिके, ज्यों ज्यों बके जो र बे॥ जगावे जो कोन जायके, तो बहुत करे बकोर बे॥ जा० ॥ ७ ॥ जोरे ताकू जगाय के, गुरु कहे क्यों वत्स आज बे॥ एती वेर लंध्या हता, तव सो तजिने लाज बे ॥ जा ॥ ए ॥ उत्तर गुरुकू यूं दियो, जब दुं अ र्थ चिंतु एकध्यान बे॥ तब तुम सबकू कंघेकी, ब्रांति लगी नगवान बे॥ ॥ जा० ॥ १० ॥ जूठो ताकू जानिके, मुनिजनें मेट्यो नवेख वे ॥ कोन क दर्थना नवि करे, गुरुये पण त्यज्यो बेक वे ॥ जा० ॥ ११ ॥ मोह राजा ने मागसें, आवयुं तेहy अंग बे॥ सदागम तव नागो सही, सदबोधे