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श्रीनुवननानु केवलीनो रास. नए मां, लोक करे ने हांसुं हो ॥प्रि॥२॥ आजलगें तो कुशलपणे ते,मे पूरण नथि पास्युं हो ॥ प्रि॥ फेरव्युं पण न फरे अमारूं, वेरीएं जे वायूं हो ॥ प्रि० ॥३॥ निपुण अडे शत्रु ए सघला, मुज मतनिमां जेवा हो ॥ प्रि० ॥ ए अम वासित जनना मनने, समरथ डे नांजेवा हो ॥ प्रि० ॥४॥ स म्यक् दर्शन नामें सहि माहरो, विशेष अजे ते वेरी हो ॥ प्रि० ॥ धर्मबुद्धि नामें ले धूया, तेहने गुणनी लहेरी हो ॥ प्रि० ॥ ५॥ सुरपति सरिखा से वे जेहने, चक्री जेहने चाहे हो ॥ प्रि० ॥ मगन थईने रहे मुनि मनमां, अवनीपति आराहे हो ॥ प्रि० ॥६॥ सुधी जन जेहनी संगति इने, ध्या नी जेहने ध्याये हो ॥ प्रि० ॥ उत्तम जन अंगीकरे जेहने, जे अमरने मो ह नपाये हो ॥ प्रि० ॥ ७ ॥ सकल सौजाग्य रूप सुधीनी, तरंगिणी ते रा जे हो ॥ प्रि० ॥ तापस पण ते. सद् तेहने, बबी अनोपम बाजे हो ॥ प्रि० ॥ ॥ वश्य करवा चाहे तेह पासें प्रथम एहने प्रेखे हो ॥ प्रि॥ अम वासित देखी जन एहने, अमने न गणे लेखे हो ॥ प्रि० ॥ ॥ थ म स्वामीना नक्त जे पूरा, जे रहे चरणें विलगा हो ॥ प्रि०॥ ततखिण ते हना मन एह नांजी, अमथी करे ते अलगा हो ॥ प्रि॥१०॥ उत्तम कु लनी नपन अबला, जे अदनूत रूपाली हो ॥
प्रियाशक थया जेह नर एहना, ते मेले तेहने टाली हो ॥ प्रि० ॥ ११ ॥ उपदेशे जे एहने लागे, तेहने संग बीजो न सुहाय हो ॥ प्रि० ॥ एहनी पूनमतो हीमे, निविड स्नेही थाय हो ॥ बि० ॥ १२॥ सार करीने माने तेहने, तेहy पासुंता गी हो ॥ प्रि० ॥ संसार सघलो तेहमें देखी, अमने वेरी जाणी हो॥प्रि० ॥ १३ ॥ पद अमारो एह सम्लो , ननमूले श्म जाणो हो । प्रि॥ चिं तातुर ढुं ते माटे, अवर न सांसो बाणो हो ॥ प्रि० ॥ १४ ॥ गणी शमी ढालें एम बोले, नदय रतन एकतानें हो ॥ प्रि० ॥ नविजन जावें त त्पर थाजो, जिन वाणी सुणवाने हो ॥ प्रि॥१५॥ सर्व गाथा ॥३३६॥
॥ दोहा ॥ ॥ तव सा कांक मन हसी, कुदृष्टि कहे सुणो कंत ॥ वणिकपा एतु मने, नयनी लागे नंत ॥ १॥ अर्कपत्र जिम दूरथी, शशि ज्योति सा दात ॥ व्याघ्र कर्ण नासे प्रनु, शरद पुनमनी रात ॥ २ ॥ तिम लागे तुमने, अबतो जय अनंत ॥ मन कल्पित कायर परें, शूरा नवि शंकंत