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जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमी.
लोचें रति नरें ॥ ५ ॥ कुदृष्टि नामें तस नार, पेखी कहे तिथिवार ॥
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० ॥ कु जगमां युवत। इशी ॥ जेहने काजें धरि राग, अरति करो बो प्रयाग ॥ ० ॥ कुरा तुम कालजमां वशी ॥ ६ ॥ रूप पुरंदर स्वामि, यु वती जन विश्राम ॥ ० ॥ मोहन मुनें कहोने खरूं ॥ कुण एहवी गुण वान, नारी रूप निधान ॥ प्रा० ॥ जेणें मन प्रजुनुं युं ॥ ७ ॥ तव ते कहे गुण खाण, हसतां पण ए वा ॥ सुरा वाम ॥ कहेवी सही न घटे तुने ॥ जे तुजविण बीजी नार || सूतां सुपन मजार ॥ ० ॥ दीवी पण न गमे मुने ॥ ८ ॥ कोइक कार्य विशेष, चिंता वर्ते बे एष ॥ तवसा नम री उल्लालीने ॥ कहेतुं स्वामी गुं काम, एहवुं वे उद्दाम ॥ ० ॥ जिसे रा युं बेचित घालीने ॥ ए ॥ लीलामां त्रिभुवन देव, वश करो ततखेव ॥ ० ॥ समरथने चिंता किशी ॥ कहेवा योग्य जो होय, तो कहो मुज या गले सोय ॥ ० ॥ चिंता जे चित्तमां वसी ॥ १० ॥ सु सुनगे में कांइ, श्राजलगें मनमांहि ॥ सुणो वाम ॥ कपट किश्यो नवि राखिने || मुज घर नो कारनार, तुहायें निरधार ॥ या० ॥ एशुं याज तें जाखिने ॥ ११ ॥ न दरतन कहे एम, सुणो श्रोता धरि प्रेम ॥ सुख का में, श्रागमने जे अन्यसे ॥ खदारमी ढाले तेह, नवनो लहेशे बेह ॥ सु० ॥ मन मान्युं तेहनुं थशे ॥ १२ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ चिंतानुं कारण हवे, सुण मन राखी ठाय ॥ कर्म परिणामें धर्मने, काजें एक सखाय ॥ १ ॥ अव्ययपुरथी ऊधरी, ऊंचो आयो तेह | सांप्रत श्री निलय पुरे, धन तिलक श्रेष्टी गेह ॥ २ ॥ धनवंती कुखें धस्यो, जीव संसारी सोय ॥ जिम जिम ते वाधे तिहां, तिम इहां चिंता होय ॥ ३ ॥ प्रतिज्ञा प्रभु खागले, पण पांकी ते काज ॥ में कीधी बे मजलसे, अहो बजे सुए आज ॥ ४ ॥ तें पण तेह सुणी हशे, कठिण ने ए काज ॥ इ तर लोकतली परें, फल न होय अवाज ॥ ५ ॥ सर्वगाथा ॥ ३२९ ॥ ॥ ढाल नगलीशमी ॥
॥ गढ बुंदि हो वाला ॥ एहनी देशी ॥ चारित्र धर्म नृप बे चावो, संग्रा मे महा सुरो हो ॥ प्रिये पंकजनयणी, सुनगे सुख शशिवदना ॥ कर्म प रिणाम राजाने काने, ते लागो बे पुरो हो । प्रि० ॥ १ ॥ मोह राजानी माजा मुकीने, कर्म करे ने पासुं हो ॥ प्रि० ॥ याग उठे वे तिणे निजघर