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१०० जैनकथा रत्नकोप नाग पांचमो. के० ) सुलन एवं (केवलंझानं के) केवल ज्ञान (जझे के०) उपन्युं अने (नानेयवीरप्रनृतिजिनपतेःअपि के०) रुपनदेवथी वीरनगवान् प्रमुख जि नपतिने पण ( यत् के० ) जे केवलझान (चिरेण के०) घणाकालें (अनू त् के०) थयु. अर्थात् सर्व तीर्थकर थकी मल्लीनाथ तीर्थकरनो एटलो वि शेष के बीजा तीर्थकरने दीदा लीधा परी घणाकालें केवलझान थयुं अने मन्निनाथने एक दिवसमांज व्रतादि सर्व प्राप्त थयां ॥७॥
पाहीं मनीनाथनी कथा कहे . मिथिलानगरीनेविषे श्रीकुंजनामा राजानी स्त्री प्रजावती राणी चनदस्वप्नायें सूचित तथा नील जेनो वर्ण जे, कुंननुं जेने लांबन , पचवीश धनुप जेना देहनुं प्रमाण एवा महिन नाथ तीर्थकरने जन्म प्राप्यो. इंजोयें जन्ममहोत्सव कस्यो यौवन अवस्था मां पण जन्मथीज ब्रह्मचारी होवाथी पाणिग्रहण कयुं नही अने राज्य पण ग्रहण कयुं नहिं. सांवत्सरिक दान दीधा पनी स्वयमेव दीक्षा ग्रहण करी दिवसना प्रथम प्रहरमां व्रतनुं ग्रहण थयुं अने तेज दिवसना बीजा प्रहरमा प्रनुने केवलज्ञान उत्पन्न थयुं ॥ ए ॥ इति धर्मप्रकरः समाप्तः ॥
श्रुत्वाहानंस्त्रियस्तामनुसरतिरसोहंसकोन्नादपादे, ना शोकः स्टष्टमात्रस्तिलककुरुबकोचुंबनालिंगनान्यां ॥ पुष्येकाब्जवासाधिकरससुरयाकेसरश्चेदिकारो, ऽप्ये पांतत्सत्यकीवाधिकविषयरतिर्यातुकिं नो नवार्ति॥१॥ अर्थः-( स्त्रियः के०) स्त्रीना (आह्वानं के०) आह्वानने (श्रुत्वा के) श्रवण करीने ( रसः के० ) पारो, ते (तां के०) ते स्त्रीने (अनुसरति के.) अनुसरे ले, एटले तेनी पडवाडे जाय . तथा (हंसकोनादपादेन के०) नेपुरें कर, अधिक नाद करता एवा स्त्रीना पगे करीने ( स्टष्टमात्रः के०) स्पर्श कराणो एवो (अशोकः के० ) अशोक वृद ते (पुष्येत् के०) पोषण ने प्राप्त थाय . तथा (तिलककुरबको के०) तिलक अने कुरबकनो वृद, (चुंबनालिंगनान्यां के० ) स्त्रीना चुंबन अने आलिंगनथकी पोषणने प्राप्त थाय ले. अर्थात् बेदु वदनां पुष्पो विसिकत थाय जे. (वक्रानवासाधिकर ससुरया के०) कामिनीना मुख कमलना परिमलें करीअधिक के रस जेमां एव। मदिरायें करी गंव्यो एवो (केसरः के०) केसर नामा वृक्ष पोषण था