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४ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. ( हेतुषु के० ) वृषनादि हेतु बते (प्रत्येकबुक्षेष्विव के० ) प्रत्येक बुझोने विषे जेम वैराग्य (नवति के०) थयो. त्यां कवि कहे . फुःखदायक संसा रने विपे पण वैराग्य रह्यो जे. केनी पेठे तो के (सूर्याश्मनि के०) सूर्य मणिने विषे ( अनलं के०) अग्मिने (कोऽशदीत् के० ) कोण जोतो हवो कोइ नहि तथा ( शशिमणो के०) चांश्मणिने विषे ( पयः के०) अमृ तरूप उधने कोण जोतो हवो तथा (सुवर्णावनौ के० ) सुवर्णमय पृथ्वीने विषे ( स्वर्ण के) सुवर्णने कोण जोतो हतो, अर्थात् ते पूर्वोक्त. सर्व वस्तु एटलाने विष अदृष्टज जे. परंतु (पुनः के०) वली (अर्कचंतनुगयोगात् के ) सूर्यमणि, चश्मणि, सुवर्ण तेनें एटले अनुक्रमे सूर्यमणिने सूर्यनो, चश्मणीने चंनो तथा स्वर्णनूमिने अमिनो योग होवाथी अग्नि, उध, अने सुवर्ण उत्पन्न थाय ने ( वा के० ) तेम ( कुतोपिके) क्यारेक पण देह थकी वैराग्य (एति के०) नत्पन्न थाय छे. एम जाणवू. जेम पूर्वोक्त प. दार्थ सूर्यादिकना योगथी थाय ने तेम कोश्क वरखतें देहादिकथी वैराग्य नुत्पन्न थाय ॥ ७० ॥ इति वैराग्यप्रक्रमः ॥
आंहिं चार प्रत्येक बुझ्नो दृष्टांत होवाथी तेनी कथामा प्रथम करकंमप्र त्येक बुधनी कथा कहे .कलिंग देशे काकंदी नगरीमांकरकंकु राजा राज्य करे
.तेणें एक दिवस राजमार्गमां जतां एक गोकुलने विपे जाडा कांधवालो, गंची कोट वालो, धोला दांत वालो, अने महाबलवान्, पोतानी त्राडथी दिशाउने गजवतो, अत्यंत सुशोनित,एवो एक वपन दीठो. तेथी राजाना मनमां अत्यंत प्रमोद उपनो. वली केटला एक वर्ष पड़ी पाबा तेज रस्ते चालता ते राजायें जर्जरीनूत गाववालो पड़ी गयेला बे दांत जेना एवो तथा जेना मोढामांथी लाल पडतीजाय ने बिनस मुखवालो अने पशुथी कुःख सहन करतो शोना रहित एवा तेज वृषनने जोयो ते जोड्ने राजा विचार करे डे के जेवी दशा या वृषननी थइ तेवी दशा आ माहारा कलेवरनी पण थशे? एम चिंतवता वैराग्य उत्पन्न थवाथी ते करकं राजा पोतेंज दीदा ग्रह ण करी कर्मनो क्य करी सिदिने प्राप्त थयो. एकरकं प्रत्येक बुधनी कथा.
हवे उम्मुहराजानी कथा कहे . पंचाल देशमां कांपिठ्यपुरने विषे र्मुख नामा राजा हतो. ते एक दिवस नगरथी बाहेर निकटयो ने तेणें रस्तामां नगरना घणा लोकोयें पूजन करेलो, तथा जेनी बागल शृंगार