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________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सदित. ४५७ गुरु कहे ले के सिद्धांतमांहे श्रावकने पडिक्कमणुं करवानो पात अनेक काणे कह्यो ने प्रथमतो श्रीअनुयोगधारमांहे देखिये यें. यतः॥ सेकित्तं लोउत्तरिथं जावावस्सयं जं समयोवा समणिवा सावळवा साविधावा त चित्ते जाव उनकालं आवस्सयं करे इति तथा वली एज अनुयोगधारमा हे ए गाथा . यतः ॥ समणेण सावएणय, अवस्स कयवयं हवः जम्मा ॥ अंतो अहोनिसस्स, तम्हा श्रावस्सयं णाम ॥ १ ॥ नावार्थः-ते केम लोकोत्तर नाव आवश्यक जे साधु अथवा साध्वी श्रावक अथवा श्रावि का ते तञ्चित्त एवां थयांथकां ननयकाल आवश्यक करे. तथा तिहांज कह्युजे जे साधुयें श्रावकें अवश्य करीने पडिक्कमणुं करवू होय जेमाटे य होरात्रमांहे अंते कराय तेमाटे एर्नु आवश्यक एवं नाम ले ॥ १ ॥ तेमज नवांगनी टीकाना करनार श्रीअनयदेवसूरि तथा कलिकालमां सर्व सरखा श्रीहेमचंशचार्य प्रमुख पूर्वाचार्य रचेला एवा जे पंचाशक वृत्ति, योगशास्त्र प्रमुख अनेक ग्रंथ तेनेविपे श्रावकने पडिक्कमणुं सादा तपणे कडं डे ते सर्वत्र प्रसिभ जे. ते पडिक्कमणाना पांच नेद ने एक देवसिक, बीजो रात्रिक, त्रीजो पा दिकं, चोथो चातुर्मासिन अने पांचमो सांवत्सरिक ए पांच पडिक्कमणाना विधि महारा करेला विधिकौमुदिनामा ग्रंथथकी जाणजो. __ए वंदितासूत्रनो बालावबोध जगतमां विख्यातिवंत एवा श्रीतपगढ बि रुदना धारक श्रीजगचंसूरीश्वर होताहवा तेमने पाटें अनुक्रमें श्रीदेवसुंद रसूरि उत्तमोत्तम थया तेमना पांच शिष्य हता तेमांहे पहेला शिष्य श्रीज्ञा नसागरसूरीश्वर गुरु ते विविध प्रकारनी अवचूरीरूप लहरीना प्रगट करवा थकी साचा नामना धारक थया जेणे आगमना विविधप्रकारना आलावा नया एवा. ते सूरिना ६६ होताहवा तथा बीजा श्रीकुलममनसूरी,त्रीजा श्रीगुणरत्ननामा सूरि,जे पदर्शनवृत्ति, क्रियारत्नसमुच्चय, विचारसंग्रह इत्या दि ग्रंथोना करनार थया, अने जे श्रीनुवनसुंदरसूरि आदिने विपे विद्यागुरु पणाने नजता हवा तथा चोथा श्रीसोमसुंदरसूरि प्रवरगुरु चोथा गुरुनाइ महोटा महिमाना धणी थया जेथकी धर्मनी के प्रकारे अत्यंत संतति श्रेणी थडे तथा वली यतिजितकल्पनीकृत्तिना कारक एवा पांचमा गुरुनाइ ५८
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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