SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४७ जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. टे नलीरीतें मनःशुध्येि यत्नेकरीने अवसर मजे थके वारंवार सामायिक करवू यतः ॥ सामाश्यंमि नकए, समणोश्व साव दवइ जम्मा ॥ एएण कारणेणं, बहुसो सामाश्यं कुळा॥१॥जीवो पमाय बदुलो, बदुसोविय बहु विहेसु असु ॥ एएण कारणेणं, बहुसो सामाश्यं कुता ॥॥ नावार्थः-सा मायिक करे यके साधुनी पेरें श्रावक जाणवो जेमाटे ए ए कारणे करीने घणा वखत सामायिक करजे ॥१॥ घणा पदार्थमांहे जीव घणो प्रमादी ने ए कारण माटे सामायिक करजे तथा यावश्यकचूर्णिमांहे पण कडं के॥ यदासवसामाश्यंकान असत्तो तदा देससामाश्यंपि ताव बदुसो कुजा इति तथा जलवा वि समअबश्वानिवावारो सबब सामाश्यं करे इति एटले जो सर्वथकी सामायिक करवा समर्थ नथी तो देशथकी सामायिक पण वारं वार करवू इति ॥ तेम जिहां विश्राम करे तथा जिहां कोई कार्य करवून होय के व्यापार न होय तिहां सघले उकाणे सामायिक करे इति ॥ एम करवाथी वे संध्यायें सामायिक अवश्य करवू एवा नियमनुं टलवापणुं ययु कारण के निवृति तो एक दिवसमाहे घणा वसत संनवे . एटने या वे लायें सामायिक न नेवाय एवो नियम समजयो नही परंतु जेनारे नवरा श होय कोई काम न होय तेवारें सामायिक करे एथी व संध्या टालीन व णी वखत सामायिक करे एम सिह थयु विशेपयुक्ति जोवी होय तो प्रज्य प्रणीत विचारामृतसंग्रह ग्रंथथी जोइ लेजो. हां कोई पूजे के जेवारे नवराश अर्दघटिका मात्रज होय परंतु बघ टिका पर्यंत न होय तो तेवारे ते यावत् वे घडीना नियम पर्यंत सामा यिक केम करे. कारण के नियमनुं मानतो जघन्यथकी वे घटिकानुज कह्यु बे. माटे तेटलो वखत न मले तो जावनियमं एवो पाठ केम कहे. ___ गुरु उत्तर कहे जे. हे शिष्य ! तें कह्यं ते सत्य ले परंतु जेवारें नवराश थोडी होय तेवारें सामायिक दंमक उन्नया विना एमज समता नावमा रहे तेज सामायिक कहियें एम संनवियें बेये. तत्त्वं बहुश्रुतगम्यं ॥ हवे सामायिक, फल कहे जे ॥ दिवसे दिवसे लरकं, देश सुवन्नस्स खमियं एगो ॥ श्यरो पुणसामाश्यं, करे न पहूपए तस्स ॥१॥ सामाश्यंकुणतो, समनावं सावध घडिय डुग्गं ॥ आउ सुरेसु बंधs, इति अमित्ताइ पति याई ॥ ॥ बाणवा कोडी, लरका गुणसहि सहस्स पणवीसं ॥
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy