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अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. ३३७ सारनां सुख जोगवी सजुरुनो उपदेश सांजली चारित्र लइ घोर तपश्या क रीने घातिकर्मनो क्ष्य करी केवलज्ञान पामी नव्यजीवोने धर्मोपदेश आपी नपकार करी सकल कर्मनो दय करीने मोद पामशे. ए आठमा अनर्थदंम विरमणव्रतनेविपे वीरसेन अने कुसुमश्रीनो दृष्टांत कह्यो.ए श्रावकप्रतिक्रम णसूत्रना बालावबोधनेविषेत्रण गुणवतनो त्रीजो अधिकार संपूर्ण थयो।
॥अथ चार शिदात्रतरूप चतुर्थाधिकार प्रारंजः ॥ तेमा प्रथम वारव्रतनी अपेक्षायें नवमुं सामायिक व्रत अथवा चार शिदाव्रतनी अपेक्षायें पहेलुं सामायिक व्रत के तेनो अधिकार कहे जे.
ए सामायिकनो विधि, आवश्यकनी चूर्णियकी तथा पंचाशकनी चूर्णि अने योगशास्त्रनी टीका इत्यादि शास्त्रोथी कहियें बैयें तिहां श्रावक वे प्र कारना ने एक दिवंत अने बीजा अहिवंत ते श्रावकोने सामायिक क रवानां चार स्थानक कह्यां . तेमां एक देरासरमा सामायिक करे, बी जुं साधुपासें सामायिक करे, त्रीजु पौपधशालाने विपे सामायिक करे, अ ने चोथु पोताना घरनेविपे सामायिक करे, जेवारें नवराश थाय कां का म न होय तेवारें चार स्थानकमांहे गमे ते स्थानकें जश् सामायिक करे.
तेमांजे साधु समीपें आवीने सामायिक करे तेनो विधि कहे .जे श्राव कने माथे कोश्नो नय न होय, कोश्नी साथे वढवाड न होय, कोनुं माथे देवू न होय केम के लहेणुं होय तो लोणावालो आकर्षण खेंचताण क रे ते निमित्तै चिनने संक्लेश थाय माटे तेथी वर्जित एवो श्रावक जेवारें कामकाजथी निवृत्ति पामे तेवारें पोताने घेर सामायिक करी पनी र्यास मिति शोधतो शोधतो, सावद्यनापा बांमतो, कदाचित् श्लेष्म तथा बड खा विगेरेने माटे तृणपखें तथा कांकरो अथवा लाकडानो कटको विगेरे जोश्ये तो. ते वस्तुना स्वामी गृहस्थनी रजा लश्ने पुंजी प्रमार्जीने लीये अने बडखा विगेरेने पण एकांतें निरवद्यस्थानकें नूमिका दृष्टें जो पुंजी प्रमार्जीने यत्नायें परत्वे, एवी विधिपूर्वक पांच समिति अने त्रण गुप्ति सहित थको त्रण निसहि कहेतो गुरुने नपाश्रये जर गुरुने नमीने गुरुनी समद जे विधि कह्यो जे ते विधियें सामायिक दंम्कनो उच्चार करे उच्चार करीने ज्येष्ट वडेरा एवा आचार्यादिकने वांदे तथा न्हाना महोटा सर्व