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अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सदित. ३१३ णधीर नामे राजा तेनी रत्नावली नामे स्त्री हती ते संताननी चिंतायें करी घणी दुःवी थवा लागी तेथी तेणें संतान प्राप्ति माटे सेंकडो नपायो कस्या तेवारें पूर्वकत सुरूतना योगें तेने कुसुमश्री एवे नामे एक पुत्री थइ. ते रूप लावण्य शीलादिकगुणेकरी अति अभुत थइ, ते चालती थकी जाणे कंद पनी थावर नही पण जंगम राजधानी होयनी तेवी ले ते यौवनावस्था मां आवी एटले तेना पिताने वरनी चिंता- चपनी.. ___ एवामां चरपुरुपना मुखथी सांजव्युं जे रूपेंकरी कंदवतार जेवो वी रसेन कुमार ते कुसुमश्रीने योग्य वर जे ए वात सांजलीने सुरसुंदर नामे निपुण प्रधानने राजायें कनकशाल नगरें वर जोवा माटे मोकट्यो. ते प्र धान पण त्यां कनकशाल नगरमां जश् लक्ष्मीने रहेवाना घररूप एवा वी रसेन कुमरने देखीने रीज पाम्यो अने कन्यानुं वेशवाल कयुं. वीरसेन कु पर पण पितानी आझा लइ प्रधाननी साथें रत्नपुरने विपे याव्यो. तिहां राजा महोत्सव सहित वीरसेनने कुसुमश्रीतुं पाणिग्रहण करावतो हवो तेवारें चोरीमा कुसुमश्रीयें गुप्तपणे वीरसेनने कह्यु के तमे हाथ मूकाववा ने अवसरें देवतानो आपेलो देव अदृश्य अश्व मागी लेजो वीजो पव्यंक अने त्रीजो शुक ए त्रण वस्तु जो बीजा कोश्नी जरुर नथी. ते अश्व कहेवो के के जे स्थानके आपणने जq होय ते स्थानक, नाम देने हं कारी तेवारे देवताना विमाननी पेरें तिहां जश्ने मूके. तथा पट्यंकनी पासेथी जे वांबित मागीये ते आपे, थाक श्रम सर्व टली जाय देवशय्या नी पेठे सुखें निश आवे, स्वामीने अर्थ पवाडे चाल्यो आवे, तथा शुक ने ते चूडामणी प्रमुख शुकनशास्त्रनो जाण, घणो माह्यो, निमित्तशास्त्रनो जाणनार, आपदामां धैर्यने देनारो ने एम ए त्रणेय वस्तु रत्न जेवी जगत मां मलवी उर्जन ने माटे तमे ए त्रण वस्तु मागी खेजो. कुमरें पण तेमज ते त्रणेय वस्तु मागी नीधी तेवारें राजायें विचायुं जे ए त्रणे वस्तुनी वा र्ता निश्चें महारी पुत्री विना बीजो कोई एहने कहे नही ए महारा घरना रहस्यनी वात पुत्रीयेंज कहेली ने माटे में एने पालीने महोटी करी प ण आखर पारकीज जाणवी घरमांथी जतीथकी सर्व पितानी दिलेश्ने जाय एवं चिंतवीने जो पण ते त्रणे वस्तु राखवा योग्य वे तो पण कांड क पुत्रीना स्नेहयकी कांइक लहाथका जेम गुरु नव्य जीवने रत्नत्रयी