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________________ ३०० जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. ते अनर्थदंझना चार नेद ने पहेलो अपध्यान, बीजो पापोपदेश, त्रीजो हिंसाप्रदान अने चोथो प्रमादाचरित तेमां प्रयम अपध्यानना वे जेद ने पहेलु आर्तध्यान,बीजु रोऽध्यान,तेमां जे ध्यानयी चित्तने पीडा उपजे अ समाधि थाय ते आर्तध्यान कहीयें अने जेनाथकी जीवना संक्लिष्ट अध्य वसाय थाय भागला, मातुं चिंतवq थाय ते रोऽध्यान कहियें. हवे वली ते आनध्यानना चार नेद ने एक श्ट संयोग, बीजो अनिष्ट वियोग, त्रीजो रोगनी चिंता, चोयो देवें दानवेंना सुखनी अनितापा ते निया| करवू नया गैइध्यानना चार नेद कहे जेः-एक हिंसानुबंधि, वी जुं मृपानुबंधि, त्रीजुं स्तेयानुबंधि चोथु विषयसंरक्षणानुबंधि. तिहां अतिक्रोधादिकेंकरीने वैरीनो वध करको बंधन करवू नाक कर्णा दिक ले दवां, देशनंगादिक, चिंतन ते प्रथम हिंसानुबंधि रौऽध्यान. तथा बीजुं जूठी चाडी करे, जूनां बाल दे जेषकी अागला प्राणीनो घात थाय ते मृ पानुबंधि.त्रीजुं पारकुं इव्य हरवानी चिंता ते स्तेयानुबंधि. चोथु शब्दादिक विषय साधन धनरदार्थ कोइनो विश्वास न करे, वीजाने विश्वास देने तेनो घात करे तेथी कल्याण थाय एवं पुान ते विपय संरक्षणानुबंधि रौइध्यान कहियें. ए सर्व अपध्यानाचरित अनर्थदंम कहियें. २ बीजो पापोपदेश अनर्थदंम ते देत्र खेडो, उपनने दमो.घोडाने खा सी करो, शत्रुने हागो,यंत्र फेरवो,शस्त्र सङ करो,ए सर्व पापोपदेश कहियें. ३ त्रीजो वर्षाकाल नजीक आव्यो माटे खेत्रमा जाला घणा ने ते वा ली नारखो, हल सज करो, वावणी करवानो काल जतो रहे जे माटे शीघ्र पणे धान वावो, क्यारा जराणा ने साडात्रण दिवसमांहे व्रीही प्रमुख चो खा वय प्राप्ति थ तथा ए कन्या महोटी यएने तरत परणावो तया प्रव हण पूरवाना दिवस जाय के नांगा त्रूटा वाहाणप्रत्ये सऊ करावो इत्यादि सर्व पापोपदेश कहेवाय, अने हिंसाप्रदान तथा प्रमादाचरित रूप वे ने दमां घणुं सावद्यपणुं ते सूत्रकार पोतेंज वे गाथायेंकरी कहे : सनग्गि मुसल जतगं, तणक मंतमूल नेसले ॥दिन्नेदवा वि एवा, पडिक्क० ॥२४॥ पहाणवट्टण वन्नग, विलेवणे सह रूव रस गंधे, वासण आनरणे पडिक० ॥ २५॥
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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