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________________ २४७ जैनकथा रनकोप नाग चोयो. आदिक सर्व जातिना धूपादिक तथा माव्य ने फूलनी मालादिक पुपादि क फूलनी पाखडी उपलदणर्थ। वेशनी शोना आचरण प्रमुख शेप समय जोग्यवस्तु जाणवी ए विषयरूप डे एनां परिमाण करवां. एवा उपनोग परिजोग नामा बीजा गुणवतनेविपे अनापयोगें करीने जे उलंघ्यु होय ते नि बु ए वीशमी गाथानो अर्थ ॥ २० ॥ हवे ए व्रतना वीश अतिचारमाथी प्रथम नोगथकी पांच अतिचार पडिक्कमवाने गाथा कहे :॥सचित्ते पडिब, अप्पोल डुप्पोलिअंच आहारो॥ तुगोसदि परकरणया, पडिक्कम देसियं सवं ॥१॥ अर्थः-जेणे सचित्तनो परिहार कस्यो ने अथवा जेणे सचित्तनुं परिमा ण कयुं ते सचित्तनुं परिमाण कस्या उपरांत अनापयोगे अधिक खवा एं होय अथवा सचित्तनो सर्वत्याग कस्यो होय पती विस्मृत लगें खाएं होय ते सचित्त बाहार नामे प्रथम अतिचार जागवो. २ वृदयकी तत्कालनो उतारयो एवो सुंदर तथा रायण प्रमुख तेमाहे बीज सचित्त ने पण पाकेलां फल ले माटे निर्दीप ले अने एनां बीज स चित्त ने ते काढी नावीश एवी बुद्धियेंकरीने या फल मुखमांदे घाले ते सचित्तप्रतिबद लामा बीजो अतिचार जाणवो. ३ त्रीजो अपक्क ते दाणाने अग्निये संस्कार करवाथी पण कोश्क दा पाने अनि परिणम्यो नथी माटे तेवा दाणा काचा रही गया जे अथवा लोटतो अचित्तज ने एवी बुझियेंकरीने नहाण करतां अपक्कोषधि नामा त्रीजो अतिचार जाणवो. हवे लोट केटलोकाल मिश्र रहे अने केवीरीतें अचित्त थाय ते कहे . चाव्यो आटो अंतरमुहूर्त मात्र पनी अचित्त जा वो. अणचाल्यो बाटो मिश्र कहेवाय केम के तेमां धान्यना नवियां प्र मुख अवयव रहे तथा आखो दाणो रहे तेने शस्त्रे परिणतनो संनव न थी थयो तेमाटे ते मिश्र कहेवाय ते केटलोकाल मिश्र रहे ते कहे जे:श्रावण अने जादरवा मासमां अणचाट्यो बाटो पांच दिवस मिश्र रहे.. अाशु अने कार्तिकमां चार दिवस, तथा मागशिर पोसमांत्रण दिवस, त था माघ अने फागुणमां पांच प्रहर, चैत्र वैशाखमां चार प्रहर, ज्येष्ठ त
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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