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अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित.
थाय तेवो उपाय करवो जोये, एवो पोतानी स्त्रीनो अत्यंत हठवाद देखी ते रत्नागर शेठ स्त्रीयें प्रेो थको एकदा ते नगरना उद्याननेविषे अजित नाथ भगवानना प्रासादनें बारणें गयो. तिहां अजितबला एवे नामें एक देवीनं स्थानक बे, ते देवीनो प्रभाव पण घणो बे, एवी प्राजाविक देवी जाणीने देवीनी पासें पुत्रनी प्राप्ति सारु शेठ, विधियुक्त उपवासो करवा लाग्यो. कवि क के प्रत्यंत क्रिया याय तो ते काळें करी फलदायक थाय बे. अने जो शुनकर्मनो उदय यावे तो ते तत्काल फले. हवे देवीनी नक्ति करवायी
शेवनी स्त्रीने कल्पवृक्ष सरखा पुत्रनो जन्म थयो. शेतें दश दिवसपर्यंत पू ना जन्मनो महोटो उत्सव कस्यो, बारमें दिवसें देवीये ते पुत्र याप्यो तेथी पुत्रनुं नाम सर्व कुटुंवें मली देवीना नाम उपरथी अजितसेन एवं नाम पाड्युं. अनुक्रमे ते अजितसेन पुत्र, महोटो यतो गयो ने प्रयासविना सर्व कला शिख्यो. कविकले के ते सर्व कलानुं जे जाणवुं, ते तेने युक्तज बे, त्यां कवि उत्प्रेक्षा करे वे के जे रत्नाकरनो पुत्र होय तेतो सकलकलायें युक्तज होय ? माटे जेनो बाप रत्नाकर नामक बे, तेथी तेनो पुत्र पण सर्व गुण संपन्न यो . हवे ते बालकने युवावस्था प्राप्त यइ जाणीने रत्नाकर शेठ वि चार करवा लाग्यो जे हवे या महारा पुत्रने योग्यज कन्या जोइयें. माटे शोध करवो, जेम कविश्वर नवा नवा प्रयोनो विचार करे, तेम ते शेठ कन्या नी खोल करवा लाग्यो ने मनमां विचार करवा लाग्यो जे या मारा पुत्रना जेवी गुणवाली, स्वरूपवाली एवी कन्या कइ ने किहां मलशे ? जो या पुत्र समान कन्यानो योग क्यांही पण नहि याय तो या लोकमां विधातानो सघलो उपक्रम, उद्यम, ते निष्फल था. कल्युं वे के :- सामी विसेसन्नु, अ विलीन परि णो परवसत्तं ॥ नकाय पुरुवा, चत्तारि मस्स सलाइ ॥ १ ॥ नावार्थः - स्वामी जे होय ते गुणनो जाए न होय, पोतानो परिवार विनीत होय, पराधीनपणुं होय, स्त्री होय ते पोताना समान स्वरूपवंत न होय, ए चार वानां मनुष्यने महोटा शव्यसमान बे ॥ १ ॥ एवो विचार रे, त्यां एक कनो पुत्र आव्यो, तेणे रत्नाकर शेठने प्रणाम कस्यो. त्यारे शेठें कुशलादिक पूठ्यां यने कयुं के तारो व्यापार केवोक चाव्यो ?
वारे तेणें कयुंके हे शेठजी ? तमारी आज्ञा लइने हुं देशांतरें गयो, त्यां फरतो फरतो जिहां निरंतर मंगलज व बे एवी कयंगला नामें नग